टूट कर बिखरने का डर है तो शीशे का महल बनाते क्यों हो
डरते हो जमीं पर चलते हुये तो इतनी ऊंचाई पर जाते क्यों हो

दिन में अगर मुझसे बिछुड कर चले जाते हो खुद कोसो दूर
रात को सपनों में आ-आ कर इशारों से मुझको बुलाते क्यों हो

जिन्दगी आसान बहुत है सांसों की रफ़्तार रुक जाने के बाद
मरने भी तो दो मुझको रोज एक नया ख्वाब दिखाते क्यों हो

किस्सा एक और टूटे हुये दिल का हो जायेगा सीने में दफ़न
नाजुक सा दिल है मेरा जानते हो फ़िर ठेस लगाते क्यों हो

मान कर बात इस दिल की गहरी चोट जिगर पर हमने खायी
इतना काफ़ी न था क्या, तोहमतें और हम पर लगाते क्यों हो

4 comments:

Monika (Manya) said...

सवाल हैं या खुद जवाब.. सोच में डाल देते हैं कुछ पल को..

Anonymous said...

Bahut Khoob Mohinder Ji,

Nacheez Toh Hairaan Reh Gayee Isse Padd Ke, Really Heart Touching.
Specially the below lines are Amazing : -
किस्सा एक और टूटे हुये दिल का हो जायेगा सीने में दफ़न
नाजुक सा दिल है मेरा जानते हो फ़िर ठेस लगाते क्यों हो

रंजू भाटिया said...

किस्सा एक और टूटे हुये दिल का हो जायेगा सीने में दफ़न
नाजुक सा दिल है मेरा जानते हो फ़िर ठेस लगाते क्यों हो

sahi baat kah di aapne ..bahut khoob :)

गीता पंडित said...

wah......

bahut sundar rachnaa

bahut khoob..
mohinder ji