काश

समेटने मे जो अब तक गुजरा
काश संवारने में वो गया होता
बिखरती न जिन्दगी कतरा कतरा
मैं भी समन्दर हो गया होता

किस्मत के गलियारे में जो खुलता
रास्ता वो मुझको मिल गया होता
मंजिलें चूमती आज मेरे कदम
मैं भी रहनुमा बन गया होता

बांट लेता उससे मैं दुनिया अपनी
तुझसा जिन्दगी में आ गया होता
टूटता सितारा देख मांगा तुझको
कैसे मुझे कुछ मिल गया होता

4 comments:

Sanjay Gulati Musafir said...

सुन्दर रचना

शोभा said...

मोहिन्दर जी
क्या लाज़वाब लिखा है । सच है बिल्कुल
बांट लेता उससे मैं दुनिया अपनी
तुझसा जिन्दगी में आ गया होता
टूटता सितारा देख मांगा तुझको
कैसे मुझे कुछ मिल गया होता
बहुत खूब । बधाई स्वीकारें ।

Anonymous said...

wah wah kya kehne is kavita ke...dekhte hi sunhere bhavo ka abhivyakt spashth hota hia...achi rachna hai..issi tarah aaap or bhi rachnayein likhte rahiye...tarun

रंजू भाटिया said...

बिखरती न जिन्दगी कतरा कतरा
मैं भी समन्दर हो गया होता
बेहद खूबसूरत ..............