मेरी रूह तेरी तबीयत से बहुत मिलती है
तू मुझ से यूंही बार बार मिला कर
तुझे देख कर मेरे दिल की कली खिलती है
तू मुझ से यूं ही बार बार मिला कर
दर्द अपनी हद से बढ कर, दवा हो ही गया
सब खो कर तुझे पा लिया, नफ़ा हो ही गया
अब हर सू चाहत व सकूं की हवा चलती है
तू मुझ से यूं ही बार बार मिला कर
गर्म शोले ही सर्द पानी को हवा करते है
जो बरसते हैं वो बादल ही हुआ करते हैं
रोशन सुबह काली रात के बाद निकलती है
तू मुझ से यूं ही बार बार मिला कर
7 comments:
वाह! बहुत खूब. अतिसुंदर चित्र! और अति सुंदर कविता.
अति सुन्दर...बहुत खूब....मज़ा आ गया
वाह ! बहुत बढ़िया!
घुघूती बासूती
prashayniye hia yeh rachna...bahut khoob hai.aage bhi aise hi likhte rahiye mahinder ji...
Bahut accha likha hai sir,
सब खो कर तुझे पा लिया, नफ़ा हो ही गया
Kya baat hai..
Aap bhi yuhin likha keejiye..
aur humse yun hi baar baar mila kijiye..
जो बरसते हैं वो बादल ही हुआ करते हैं
रोशन सुबह काली रात के बाद निकलती है
बहुत सुंदर लगी यह !!
adaab
mahinder ji
aapki rachna padhneka avsar mila
nihayat hi khoob surat kalaam pesh kiya hai aap ke kheyalaat bohotumda haiN go ki kahiN beher mai kami hai kintu aapke shabdhoN ka cheyan aap ki sooch aur ghouro fikar qabile tAreef hai jiskijitni bhi parshanshaki jaye kum hai meri oore se dilimubarik baad qabool kijiye
guldehelve feom pk
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