केवल संज्ञान है

सिर्फ एक खबर है
अंजान सफर है
दर्द का घर है
यह दुनिया

सुबह सवेरे बाग किनारे
इक मरियल नौकर
मोटे बाघिल कुत्ते को
बेमन से सैर कराता है

सर्दियों में आधी रात को
जब सोई होती है सारी दुनिया
नुक्कड के ढाबे का छोटू
ठंठे पानी ओर मिट्टी राख से
घिस घिस कर, अधभूखे पेट
ढेर से जुठे बर्तन चमकाता है
कोयले की बोरियां हैं
उसका बिस्तर और रज़ाई
और आस पास के
जूठन पर पलते
दो चार कुत्ते
साथ में सो कर उसके
देते हैं उसको गर्मायी
लेटे लेटे खुली आंख से
देखता है वो कितने सपने
दुनिया की इस भरी भीड में
ढूंढता है वो कुछ खोये अपने
तारों से भरे आकाश में
अपना सितारा ढूंढता है
गोल मोल सी
इस दुनिया में जाने क्यूं
एक किनारा ढूंढता है
दूर खूमारी होने से पहले
फिर उसको उठ जाना है
मालिक के आने से पहले
चुलहा उसे जलाना है
यूहीं प्यास को पीते पीते
अरमानों पर लगा पलीते
उसको जीते जाना है
हर दिन यही दोहराना है

रोज दोपहरी एक दरोगा
इसी ढाबे पर बिन पैसे दिये
दावत रोज उडाता है
क्या वो नही जानता
बाल रोज़गार का
क्या विधान है
और क्या कोई जानता है
रोजगार छुट जाने पर
इस बाल की रोटी का क्या
प्रावधान है ?

जटिल प्रश्न है
नही विज्ञान है
एक प्रयत्न है
केवल संज्ञान है

सिर्फ एक खबर है
अंजान सफर है
दर्द का घर है
यह दुनिया

2 comments:

Devi Nangrani said...

Waah
Kya zindadil jazaba hai
सिर्फ एक खबर है
अंजान सफर है
दर्द का घर है
यह दुनिया

Mat dheeraj dhar
dekh idhar
jaana kidhar

wishes

devi Nangrani

महावीर said...

जटिल प्रश्न है
नही विज्ञान है
एक प्रयत्न है
केवल संज्ञान है
बहुत सुंदर।

नया वर्ष आप सब के लिए शुभ और मंगलमय हो।
महावीर शर्मा