मन कैसा भी हो ...


मन कैसा भी हो
गीत मैं गाता हूं
याद की तडफ़ को
आंसुओं से बुझाता हूं

औरों को भी रुलाते हैं
बोल मेरे गीतों के
दर्द बिछोड का जब
लफ़्जों में मिलाता हूं

दूर तक फ़ैली है
अपने प्यार की खुश्बू
चांदनी में बैठ कर
रोज इत्र से नहाता हूं

तेरे वादे का टूटना चाहे
तोड गया मेरे दिल को
जो जगह चुनी थी तूने
वहां रोज में जाता हूं

इन्तजार अब कैसा
ऐतबार अब कैसा
दिल की मजबूरी है
जिसे मैं निभाता हूं

मन कैसा भी हो
गीत मैं गाता हूं

3 comments:

रंजू भाटिया said...

इन्तजार अब कैसा
ऐतबार अब कैसा
दिल की मजबूरी है
जिसे मैं निभाता हूं

मन कैसा भी हो
गीत मैं गाता हूं

बहुत सुंदर मोहिंदर जी ...सही है :)

बालकिशन said...

वाह.
अति सुंदर.
लगता है मेरे लिए लिखा गया गीत है.
आभार आपका.

शोभा said...

मोहिन्दर जी
मौसम को देखते हुए लिखा लगता है-
इन्तजार अब कैसा
ऐतबार अब कैसा
दिल की मजबूरी है
जिसे मैं निभाता हूं
निभाते रहिए। सस्नेह