जैरी एक रेस्तरां का मैनेजर है. वह हमेशा खुशमिजाज रहता है. जब कोई उससे उसके हालचाल पूछता है तो वह कहता है कि अगर मै थोडा और अच्छा होता तो शायद जुडंवा होना पसन्द करता. उसके साथी वेटर उसके साथ ही नौकरी बदल लेते थे क्योंकि वह एक स्वाभाविक उतप्रेरक था.
मैने एक दिन उससे पूछा कि वह हमेशा ऐसी सकारात्मक सोच कैसे रख पाता है ?
जैरी ने उत्तर दिया, "हर सुबह जागते ही मैं स्वंय से प्रशन करता हूं कि आज मेरा मूड कैसा होना चाहिये और मैं हमेशा खुशमिजाज होना ही चुनता हूं. जब भी कोई बुरी घटना घटती है तब मेरे पास दो विकल्प होते हैं ... एक तो यह की में उस घटना को याद करके घुटता और रोता रहूं या फ़िर उस घटना से एक सबक ले कर उसे भूल जाऊं और मैं दूसरा विकल्प ही चुनता हूं.
"परन्तु ऐसा करना हमेशा आसान नहीं होता" मैने प्रतिरोध किया.
"हां, होता है", जैरी ने उत्तर दिया.
"जीवन विकल्पों का दूसरा नाम है. आप किस परिस्थति में कैसा व्यवहार करें यह आप पर निर्भर करता है.. आप अपना मूड स्वंय चुनते हैं.. आप को कैसे जीना है यह आपका अपना चुनाव है", जैरी ने कहा.
काफ़ी वर्षों बाद
मैने सुना कि कुछ लुटेरों ने जैरी के रेस्तरां में घुस कर लूट पाट की और जैरी को गोली मार दी. भाग्यवश १८ घंटों के आपरेशन और कुछ हफ़्तों की देखभाल के बाद जैरी स्वस्थ हो गया.
इस दुर्घटना के कोई छ: महीने बाद मैं जैरी से मिला और उसका हाल चाल पूछा ?
उसने कहा कि क्या मैं उसके घाव देखना चाहूंगा... मैने उससे मना किया और पूछा कि जब यह घटना घटी उसे पहला ख्याल क्या आया ?
जैरी ने कहा उसे पहला ख्याल यह आया कि उसे रेस्तरां का पिछला दरवाजा बन्द रखना चाहिये था और दूसरा ख्याल यह आया कि गोली लगने के बाबजूद वह जिन्दा है और मैने चुना कि मुझे जिन्दा रहना है.
मैने पूछा,"क्या तुम्हें डर नहीं लगा ?"
जैरी बोला..."पेरामेडिकस वाले बहुत अच्छे थे वह मुझसे कहते रहे कि तुम्हें कुछ नहीं होगा तुम ठीक हो जाओगे.. मगर जब मुझे एमर्जैसी रूम में लिटाया गया तब नर्सों और डाक्टरों के चेहरे देख कर डर गया क्योंकि उनके चेहरे पर लिखा था कि मैं एक लाश हूं."
"तब तुमने क्या किया ?" मैने पूछा.
जैरी बोला, "मुझ से एक नर्स ने पूछा कि तुम्हे किसी चीज से एलर्जी है क्या ?"
मैने कहा, "हां"
सब नर्से और डाकटर अपना काम रोक कर मेरे उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे थे... मैने कहा, "मुझे गोलियों से एलर्जी है".
सब ठहाका मार कर हंस पडे.... मैने कहा, "मैं जीना चाहता हूं... मुझे जिन्दा समझ कर आपरेशन करना... न कि मुर्दा समझ कर".
अपनी जिन्दा दिल्ली और डाकटरों की कुशलता से जैरी को नई जिन्दगी मिल गई.
मैने उससे सीखा कि
जिन्दगी को खुशी खुशी जीने या उसे कोसने का विकल्प हमारे अपने हाथ में है.. और इसके सब कन्ट्रोल आपके हाथ में हैं.. सिर्फ़ हमारा व्यवहार संतुलित होना चाहिये... यह हो जाये तो जीवन सुगम और जीने लायक होगा.
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3 comments:
यह नज़रिया ठीक है।
मोहिन्दर जी
बहुत ही अच्छी कथा है। जीवन का समस्त ग्यान इसमें है। सही और सकारात्मक सोच से जीवन कितना आसान हो जाता है। ऐसी सोच देने के लिए शुक्रिया।
हमारा व्यवहार संतुलित होना चाहिये... यह हो जाये तो जीवन सुगम और जीने लायक होगा.
-सहमत.
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