सच वही नही होता जिसे हम जानते हैं या जिसे हम देखते हैं. हम हर चीज को अपने नजरिये से देखते हैं इसी लिये उसके बाकी आयाम छुपे रह जाते हैं. कभी कभी आंखों देखी भी गलत हो सकती है
..उदाहरण देख लीजिये :)
एक दिन मेरी मुलाकात रुपये से हुई.... मैने उससे कहा... तुम सिर्फ़ एक कागज भर हो.........रुपया मुस्कराया और बोला.......हां मैं एक कागज भर हूं... कहो तो रद्दी कह लो मगर मैने आज तक डस्ट बिन नहीं देखा.
5 comments:
नजर का फेर कही नजर ना फेर ले :)
बहुत सही कहा
:)
bahut hi khubsurat nazariya,ye hamne kabhi socha hi nahi,yahi nazar ka pher hai
सही है-नजर का फेर ही है.
मोहिन्दर जी
आफ एकदम सही कह रहे हैं। सोचने का अंदाज़ सही होना चाहिए।
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