चांदनी चांद की कहां
एक कर्ज है धरती का उस पर
जिसे वह स्वंय रात दिन
सूरज की तपिश में जल कर
किश्तों में रात को लौटाता है
मन का मौसम अगर बदलता
खिलते फ़ूलों से
चारों तरह गुलाब मैं उगा लेता
उदास दिल अगर बहलता
तस्वीरों से
घर तस्वीरों से मैं सजा लेता
शब्द वही हैं
अर्थ भिन्न हैं
जीते के लिये जो है "दुशाला"
मुर्दे के लिये वही "कफ़न" है
9 comments:
मन का मौसम अगर बदलता
खिलते फ़ूलों से
चारों तरह गुलाब मैं उगा लेता
उदास दिल अगर बहलता
तस्वीरों से
घर तस्वीरों से मैं सजा लेता
बहुत पसंद आई यह ..बाकी भी सब दिल को छूती हैं
wah, bahut sunder.badhai aapko
बहुत खूब.
बेहतरीन..... उम्दा..
जीते के लिये जो है "दुशाला"
मुर्दे के लिये वही "कफ़न" है
बहुत ही सुंदर अति उत्तम
बहुत सही है. वाह.
सुंदर क्षणिकाएं हैं।
बहुत सुन्दर लिखा है। पढ़कर आनन्द आगया। बधाई स्वीकारें।
बेहतरीन..... वाह!!वाह!!
बधाई.
मन का मौसम अगर बदलता
खिलते फ़ूलों से
चारों तरह गुलाब मैं उगा लेता
उदास दिल अगर बहलता
तस्वीरों से
घर तस्वीरों से मैं सजा लेता
" very beautiful, liked it'
Regards
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