रात दिन खुद से पहरों तेरी बातें
हैं मिली प्यार से मुझे ये सौगातें
सुराग मंजिलों का न पता राहों का
ठिकाना वही जहां की थी मुलाकातें
खामोशी शोर पर कितनी भारी है
चांद ने की अंधेरों से रात ये बातें
किस सूरत खिलेगा दिल का चमन
रूठ गई हम से प्यार की बरसातें
जब भी इधर से गुजरो खबर करना
कहेंगे कुछ न सुनेंगे बस तेरी बातें
3 comments:
tua din ko agar raat kaho ....raat kahenge...jo tumko ho pasand wahi baat kahenge
बहुत उम्दा, मोहिन्दर भाई. वाह!!!
aapki kavita achchi lagi. aap chaahent to main bhi apne geet, ghazal, kavitaayen aadi SAAHITYASHILPI keliye de sakta hu.
wirh regards- moin shamsi
http://moinshamsi.wordpress.com
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