यह दवा किस लिये

सावन की झडी में एक आंसू
कांटों के जंगल में एक फ़ांस
औकात क्या है अपने दर्द की
राहतों की ये हवा किस लिये

कितनी देर और धूप
कब तलक है ये चांदनी
हर पल यहां है आखिरी
लम्बी उम्र की दुआ किस लिये

उम्मीदें सारी छोड कर
अपनों से भी मुंह मोड कर
चल रही है क्यों ये धौकनी
सांसों की यह सजा किस लिये

दर्द को न छुपा हंसी में अब
दिल से बहा दे अपने सोज सब
जब मर्ज है अपना लाईलाज
तसल्लियों की यह दवा किस लिये

4 comments:

रंजू भाटिया said...

दर्द को न छुपा हंसी में अब
दिल से बहा दे अपने सोज सब
जब मर्ज है अपना लाईलाज
तसल्लियों की यह दवा किस लिये

बहुत बढ़िया कहा जी आपने

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया रचना है।बधाई।

दर्द को न छुपा हंसी में अब
दिल से बहा दे अपने सोज सब
जब मर्ज है अपना लाईलाज
तसल्लियों की यह दवा किस लिये

आलोक साहिल said...

kya bat hai sir ji,shandaar.
maja aa gay.
alok singh "sahil"

श्यामल सुमन said...

शहर में आया तो लाया अपने साथ चराग की मौत।
वही चराग जो सिसकता रहा शहर के लिए।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com