तुम आओ मेरे घर तो मैं मनाऊं दिवाली
कहने को अंधेरों में भी गुजर हो ही रहा है
तुम साथ चलो मेरे तो मंजिले-फ़िक्र कैसी
वैसे यह जिंदगी का सफ़र हो ही रहा है
कुछ रंग भरो ऐसा ठीक से जाने इसे दुनिया
किस्सा यह अपना अब खबर हो ही रहा है
तुम बचा सकते हो तो बचा लो डूबती कश्ति
हालात का मारा तूफ़ां की नजर हो ही रहा है
तुम चाहो तो बदल जाऊंगा हस्ती मिटा कर
यह गांव यूं भी अब इक शहर हो ही रहा है
7 comments:
kisi ek shaer ke baare me kahana to na insaafi hogi saari gazal hi kabile taareef hai bdhai
तुम साथ चलो मेरे तो मंजिले-फ़िक्र कैसी
वैसे यह जिंदगी का सफ़र हो ही रहा है
बहुत खूब लिखा आपने .हर शेर सुंदर लगा
कुछ रंग भरो ऐसा ठीक से जाने इसे दुनिया
किस्सा यह अपना अब खबर हो ही रहा है
waah behad sundar badhai
इरशाद.
Waah ! Bahut bahut sundar Gazal...
एक खुबसुरत ओर लाजबाव गजल.
धन्यवाद
वाह वाह क्या बात है। बढ़िया अंदाज़ है।
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