फ़िर आंधियों के भी अपने मकां होते
गर रफ़्तार ही मंजिलों का पता होती
हर दर पर खुशियां नहीं देती दस्तक
ऐसा होता गर रंजिशें इक दास्तां होती
हर दिल न बुनता ये अक्स सतरंगी
तासीरे मुहब्बत गर इक खता होती
जिन्दगी मेरी कब शिकवा किया तुझसे
तब भी गले लगाता गर तू कजा होती
तोडे सभी रिश्ते मगर यादें रही बाकी
रूह इन कर्जों से कब है रिहा होती
6 comments:
सुन्दर लिखा है।
"हर दिल न बुनता ये अक्स सतरंगी...."
वाह...वा....बेहद खूबसूरत रचना है आपकी.
नीरज
बहुत अच्छी रचना...
जिन्दगी मेरी कब शिकवा किया तुझसे
तब भी गले लगाता गर तू कजा होती
बहुत सुन्दर लगा यह शेर ..बाकी भी अच्छी लगी
वाह !!! क्या बात कही आपने....
पहली दो पंक्तिया बहुत बहुत बहुत सही लगीं.......सचमुच अगर रफ़्तार ही पैमाना होता तो आँधियों के भी घर होते........वाह...
खूबसूरत शेर कहे हैं आपने, बधाई।
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