हुस्न की मल्लिका "मधुबाला"

हिन्दी सिनेमा का अस्त्तित्व हुस्न की मल्लिका "मधुबाला" के बिना अधूरा है. इनका असली नाम मुमताज जेहन बेगम देहलवी था. पचास और साठ के दशक में इनका शुमार प्रतिभाशाली और प्रभावी अभिनेत्रियों की श्रेणी में गिना जाता है जिसमे मीना कुमारी और नर्गिस के नाम भी शामिल हैं. दिल्ली में पठान परिवार में जन्मी मधुबाला अपने 11 भाई-बहनों में पांचवें नम्बर पर थी. इनके पिता श्री अताउल्लाह खान इम्पीरियल तमाखू कम्पनी, पेशावर में कार्यरत थे. उनकी नौकरी छूट जाने से परिवार अनेक कठिनाईयों से घिर गया और इनकी चार बहनों और दो भाईयों के इन्तकाल से यह पांच बहनें ही रह गई. जीविका पालन के लिये परिवार मुम्बई स्थानान्त्रित हो गया. मधुबाला ने फ़िल्मों में 9 वर्ष की उमर में प्रवेश किया.


बाल कलाकार के रूप में उन्होंने कई फ़िल्मों में काम किया. उनकी पहली फ़िल्म "बसंत" (1942)मे बनी. उस समय की मशहूर कलाकार देविका रानी उनके अभिनय से बहुत प्रभावित हुई और उन्होंने उन्हें अपना नाम बदल कर मुमताज से मधुबाला रखने को कहा.

उनको पहला बडा ब्रेक केदार शर्मा ने राजकपूर के साथ फ़िल्म "नील कमल" (1947) में दिया उस समय उनकी उमर सिर्फ़ 14 वर्ष की थी. हालांकि यह फ़िल्म बोक्स आफ़िस पर अधिक नहीं चल पाई मगर उनकी प्रतिभा ने सब को प्रभावित किया और मिडिया व दर्शकों ने उन्हें पर्दे की रानी "विनस" का खिताब दिया.


इसके बाद अशोक कुमार के साथ इनकी फ़िल्म "महल" (1949) आई जिसका गाना "आयेगा आने वाला" बहुत मशहूर हुआ.. जिससे लता मंगेशकर भी प्रकाश में आई.

1950 में उनकी दिल की बिमारी सामने आई.. उनके दिल में बचपन से ही छेद था.. और उस समय तक सर्जरी की तकनीक अधिक उपलब्ध नहीं थी. उनकी बिमारी को छुपा कर ही रखा गया परन्तु 1954 में यह खबर मिडिया में पहुंच ही गई. उनकी फ़िल्म "बहुत दिन हुये" की शूटिंग मद्रास में चल रही थी वहीं उन्हें खून की उल्टी हुई और उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया. वासन परिवार ( बहुत दिन हुये के निर्माता) ने उनके स्वस्थ होने तक बहुत ख्याल रखा. उन्होने इस फ़िल्म के बाद 1955 में वासन के लिये एक और फ़िल्म "इन्सानियत" भी की.

हालांकि हिन्दी सिनेमा में मधुबाला काफ़ी मशहूर हुई इसके साथ वो कई अमरीकन मेगजीन जैसे "थियेटर आर्ट्स" में भी एक फ़ुल पेज फ़ोटो के साथ फ़ीचर हुई और शीर्षक था "द विगेस्ट स्टार इन द वर्ल्ड (एंड शी इज नोट इन बेवर्ली हिल्लस".

मधुबाला ने अपने केरियर की शुरुआत के चार वर्षों में तकरीबन 24 फ़िल्मों में काम किया क्योंकि उन्हें अपनी और परिवार की माली हालत को सुधारना था. इसी लिये इस बीच फ़िल्मों के चयन में उनसे कई गलत फ़ैसले भी हुये जिसपर उन्होंने बाद मे खेद भी जताया.

वह विमल राय की फ़िल्म "विराज बहु" में काम करने की इच्छुक थी क्योंकि उन्होंने वह नावल पढ रखा था परन्तु विमल राय ने उनकी ऊंची कीमत को देखते हुये उस समय संघर्ष रत अभिनेत्री कामनी कौशल को वह रोल दे दिया. जब मधुबाला को यह बात पता चली तब उन्होंने कहा कि वह तो इस रोल के लिये एक रूपये में भी राजी हो जाती.

एक अभिनेत्री के रूप में उन्होंने सभी ऊंचाईयों को छुआ और उस समय के सभी मशहूर अभिनेता व अभिनेत्रियों के साथ काम किया जैसे अशोक कुमार, राज कपूर, रहमान, प्रदीप कुमार, शम्मी कपूर, दिलीप कुमार, सुनील दत्त, देव आन्नद, कामनी कौशल, सुरैया, गीता बाली, नलनी जयवंत और निम्मी. उन्हें उस समय के मशहूर निर्माता निदेशकों जैसे मेहबूब खान (अमर), गुरु दत्त ( मिस्टर एंड मिसेज 55), कमाल अमरोही (महल), के आसिफ़ ( मुगले आजम) के साथ काम करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ.

वह प्रोडक्शन के क्षेत्र में भी कूदी और एक फ़िल्म "नाता" (1955) बनाई जिसमें उन्होंने अभिनय भी किया.

पचावें दशक के मध्य में उनकी कुछ फ़िल्में आर्थिक रूप से इस तरह असफ़ल हुईं कि उन्हें "बोक्स आफ़िस पोईजन" के नाम से जाना जाने लगा. 1958 में उन्होंने फ़िर से एक सफ़ल फ़िल्म "हावडा ब्रिज" दे कर वापसी की. इस फ़िल्म में उन्होंने एक ऐंगलों इंडियन कैबरे डांसर का रोल किया. इसके बाद एक से एक हिट "फ़ागुन", "काला पानी", "चलती का नाम गाडी", "बरसात की रात" और 1960 में "मुगल-ए-आजम" के माध्यम से सूपर स्टार के रूप में छा गई.


उनका नाम बहुत से साथी अभिनेताओं के साथ सुर्खियों में रहा जिसमें दिलीप कुमार जिनके साथ उन्होंने "ज्वार भाटा", "हार-सिंगार" और "तराना" फ़िल्में की. इन सुर्खियों को और हवा मिली जब दिलीप कुमार के साथ उन्हें उनकी फ़िल्म "इन्सानियत" के प्रीमियर पर देखा गया जिसमें मधुबाला ने काम नहीं किया था परन्तु हो सकता है यह उन्होंने डारेक्टर वासन जी के लिये किया हो. दिलीप कुमार के साथ यह संबंध बी आर चोपडा द्वारा किये गये एक कोर्ट केस से खत्म हो गया जो कि "नया दौर" फ़िल्म की शूटिंग की बजह से बजूद में आया. दिलीप कुमार ने बी आर चोपडा के पक्ष में गवाही दी जिससे मधुबाला और उनके पिता अताऊलाह खान यह केस हार गये. इस फ़िल्म में मधुबाला की जगह वैजन्ती माला को ले लिया गया. इसके साथ ही दिलीप कुमार और मधुबाला के संबंधों का अन्त हो गया.

मधुबाला की मुलाकात किशोर कुमार के साथ फ़िल्म " चलती का नाम गाडी (1958)" और "झुमरू (1961)" के दौरान हुई. उस समय किशोर कुमार बंगाली गायका और एक्टर रुमा गुहा ठाकुरता से विवाहित थे. तलाक के बाद किशोर कुमार ने मधुबाला से 1960 में विवाह कर लिया. किशोर कुमार के परिवार को खुश करने के लिये यह विवाह हिन्दू रीति से किया गया. एक महीने के भीतर ही मधुबाला वापस अपने बांदरा वाले बंगले पर लौट आई और उनका वैवाहिक जीवन अंतिम समय तक तनावग्रस्त रहा.

5 अगस्त, 1960 के दिन "मुगले-आजम" रिलीज हुई और इस फ़िल्म का रिकोर्ड 15 वर्षो तक रहा जब तक कि 1975 में फ़िल्म "शोले" रिलीज हुई. उन्हें फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड के लिये नामित किया गया परन्तु यह अवार्ड वीना राय की झोली में फ़िल्म "घूंघट" के लिये चला गया.



उसी वर्ष उनकी फ़िल्म "बरसात की रात" भी एक ब्लोक बस्टर साबित हुई. मुगले आजम के दौरान लम्बे लम्बे समय तक शूटिंग से उनकी सेहत पर प्रतिकूल असर पडा और केरियर के सबसे ऊंचे पडाव पर पहुंच कर भी वह अन्य फ़िल्मों को लेने के स्थिती में नहीं रही. इसी बीच उनकी दूसरी फ़िल्में "झूमरू", "हाफ़ टिकिट" "शराबी" भी रिलीज हुई.

उनकी फ़िल्म "जलबा" हालांकि लेट 1950 में बनना शुरु हुई थी परन्तु 1971 में रिलीज हुई यानि उनकी मौत के दो वर्ष बाद. यही एक मात्र फ़िल्म थी जिसमें वह रंगीन फ़िल्म पर थी.

1960 में मधुबाला इलाज के लिये लंडन भी गई परन्तु डाक्टरों नें आपरेशन से इन्कार कर दिया और उन्हें आराम करने की सलाह दी. डाक्टरों ने कहा कि दिल की हालत ठीक नहीं है और वह एक और वर्ष जी सकती हैं. मधुबाला वापस लौट आई और डाक्टरों की बात को झुठलाते हुये पूरे 9 वर्ष तक जीवित रही.

1966 में उन्होंने एक और फ़िल्म "चालाक" राजकपूर के साथ शुरु की परन्तु तबीयत बिगड जाने से वह बीच में ही रह गई. एकटिंग से हट कर उन्होंने एक फ़िल्म "फ़र्ज और ईश्क" डारेक्ट करनी शुरु की मगर वह पूरी न हुई और अपने 36वें जन्म दिन के कुछ दिन बाद 23 फ़रवरी, 1969" को उन्होंने इस दुनिया से बिदा ली. उन्हें उनके परिवार और किशोर कुमार द्वारा शान्ता क्रूज सिमेटरी में दफ़नाया गया.

अपने जीवन के दौरान मधुबाला ने 70 से अधिक फ़िल्मों में काम किया. उनकी तुलना मर्लिन मुनरो से की जाती है.
2004 में जब मुगले आजम का डिजिटल रंगीन वर्जन रिलीज किया गया तो दर्श्कों के लिये मधुबाला जैसे फ़िर से एक बार जीवित हो उठी.

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

आप ने मधुबाला के बारे बहुत सी बाते बताई, बहुत सुंदर लिखा.
धन्यवाद

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बेहद सुन्दर नायिका पर , सुन्दर आलेख --