क्षणिकायें - गम और खुशी

उम्र भर संभाले कांच से रिश्ते
बस और किया क्या है
सुलझाते रहे वेतरतीब उलझने
जीने को जिया क्या है

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सोचो भला
क्या होगी
हमारे दर्द की दास्तां
दो घडी सुनके जिसे
हर अजनबी
जी भर कर रोया

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गुजरे हादसे अभी भी
जहन में ताजा हैं
इस दर्द की दवा बनी ही नहीं
हर बार आप भूल जाते हो

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गम और खुशी साथ निभ न पाती है
वाक्ये जिन्दगी के हमें यही बताते हैं
बकरे ईद कब मनाते हैं

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उम्र भर रहा इन्तजार
फ़ुर्स्त के चंद लम्हों का
अब लम्बी फ़ुर्सत है
पर भला
क्या कर लिया हमने

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7 comments:

अनिल कान्त said...

हर पंक्ति को पढ़कर आनंद की प्राप्ति होती है ...वही जो अच्छा लिख पढ़कर होती है.

दिगम्बर नासवा said...

बकरे ईद कब मनाते हैं .....
बहुत ही ग़ज़ब की क्षणिका है मोहिंदर जी .....

परमजीत सिहँ बाली said...

सभी बहुत बढ़िया क्षणिकायें हैं।

Randhir Singh Suman said...

nice

निर्मला कपिला said...

लाजवाब हैं सभी क्षनिकायें मगर पहली वाली दिल को छू गयी आभार्

रानीविशाल said...

Bahut khub...ik ik par Waah nikalta hai....Aabhar!!

http://kavyamanjusha.blogspot.com/

रचना दीक्षित said...

बहुत प्रभावशाली रचना सुंदर दिल को छूते शब्द
बहुत सुन्दर प्रेमाभिवाक्ति. सुंदर शब्द संयोजन