चांद जब मुस्करा रहा था


वही झोंके
वही बदली
फ़र्क सिर्फ़ इतना भर
तुम नहीं हो साथ मेरे
अकेलापन खा रहा था

वही बांसुरी
वही धुन
फ़र्क सिर्फ़ इतना भर
वह गीत लगा अपना सा
दूर जो कोई गा रहा था

वही रुत
वही रात
फ़र्क सिर्फ़ इतना भर
हम बहा रहे थे आंसू
चांद जब मुस्करा रहा था

4 comments:

रंजना said...

Bahut sundar bhavabhivyakti...

दिगम्बर नासवा said...

ये चाँद यूँ ही मुस्कुराता रहेगा आसमान पर ...... इसे कोई फ़र्क नही पड़ता ... अच्छा लिखा है आपने ...

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर रचना, महेंदर जी धन्यवाद

kaviraj said...

dil ka darpan kabhi juth nahi bolta aap samaj gaye honge
apne sundar lika hai
alankaro ka prayog kar api bhavano ko pravahit kare