कौन था खुदा मेरे लिये

बहुत मिले
दिल से खेलने
दिल को दुखाने वाले
बातों ही बातों में
और जख्म लगाने वाले
एक तुम ने ही न मांगा
कभी अपनी वफ़ा का हिसाब
बेगर्ज लगाये मरहम
न चाहा कभी कोई सबाब
बेरुखी को मेरी
मुक्कदर अपना बना
आंसुओं को अपनी
पलकों में छुपा
मांगी हर दुआ मेरे लिये
मैं ही न समझ पाया कभी
कौन था खुदा मेरे लिये
न जाने कैसे मैं तेरा
यह अहसान चुका पाऊंगा
कर दे दिल से माफ़ मुझे
मिल जाये यहीं इंसाफ़ मुझे
वर्ना "हाय" तेरी लिये
कयामत तक  यूं ही 
फ़लक में घूमता रह जाऊंगा.

1 comment:

Udan Tashtari said...

बहुत खूब, मोहिन्दर भाई.