फ़िर यादों की हवा चली
फ़िर शाखे-तमन्ना लहराई
फ़िर फ़ूल खिले गुलशन-गुलशन
फ़िर बजी कहीं शहनाई
फ़िर कतरा-कतरा बन खुश्बू
फ़िर महका तन-मन बन खुश्बू
फ़िर फ़ैलाये ख्वाबों ने पर
फ़िर लौटा कोई अपने घर
अब दूर हुई हर उलझन
अब राह पर दिल की धडकन
अब वार त्यौहार में होंगे रंग
अब मीठी लगे हर सरगम
अब सुरमई हर रात की चिलमन
अब सुनहरी हर पल हर दिन
अब कागा का चहकना रंग लाया
अब लौट के कोई घर आया
पिछ्वाडे है अमुआ बोराया
आंगन की तुलसी पर नूर आया
धूप की आमद पर्दों ने की
बंद चूं चूं है किवाडों की
दीवारों ने सुबकना छोड दिया
छत ने चुप्पी से नाता तोड दिया
बोलता अब हर साया है
घर लौट के वो आया है
3 comments:
दीवारों ने सुबकना छोड दिया
छत ने चुप्पी से नाता तोड दिया
बोलता अब हर साया है
घर लौट के वो आया है.nice
बेहतरीन रचना है महेंद्र जी वाह....बहुत बहुत बधाई...
नीरज
पिछ्वाडे है अमुआ बोराया
आंगन की तुलसी पर नूर आया
धूप की आमद पर्दों ने की
बंद चूं चूं है किवाडों की
दीवारों ने सुबकना छोड दिया
छत ने चुप्पी से नाता तोड दिया
बोलता अब हर साया है
घर लौट के वो आया है
बहुत खूब एक एक शब्द जैसे आँखों के आगे घूम घूम कर जाने क्या क्या याद दिला गया.सच ऐसा ही होता है जब कोई चिर प्रतीक्षित घर या अपने मन में उतर जाता है
आभार
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