वक्त मरहम हो जाये
हमने बोये थे ये कांटे
फ़ूलों की हिफ़ाजत के लिये
क्या करें जब बाड ही
खेतों की दुश्मन हो जाये
बात करते तो बताता
क्या है दिल में उनके लिये
अब सोचता हूं कुछ न कहूं
कहीं और न उलझन हो जाये
ऐ वक्त तू यूं ही गुजर जाना
न पूछना लम्हों का हिसाब
जिक्र चला गर, समेटने में
ये जिन्दगी न खत्म हो जाये
क्या खबर उसका
अन्जाने ही रहम हो जाये
जिसने दिये जख्म हजारों
वही वक्त मरहम हो जाये
2 comments:
sahi he jab anpne hi du jshman ho jaye to koi kya kare
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
"बात करते तो बताता
क्या है दिल में उनके लिये
अब सोचता हूं कुछ न कहूं
कहीं और न उलझन हो जाये"
wah! kya baat hai ji,
kunwar ji,
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