लहरें और किनारा
न जाने किस लिये टकराती हैं लहरें
पथरीले इन किनारों से
इक शोर के सिवा क्या मिलता हैं
उन्हें बेजान दीवारों से
3 comments:
परमजीत सिहँ बाली
said...
bahut sundar!
May 5, 2010 at 3:03 PM
राज भाटिय़ा
said...
बहुत खुब जी
May 5, 2010 at 3:52 PM
Shekhar Kumawat
said...
shandar
May 5, 2010 at 8:31 PM
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bahut sundar!
बहुत खुब जी
shandar
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