तुम पर मय्यसर


समेटने हैं तुमको टूटे ख्वाबों के टुकडे
या फ़िर
बुनने हैं सुनहरे कल के रंगीन कपडे

तुम पर मय्यसर
चुनना है क्या तुमको

भरनी है तुमको टूटे रिश्तों की दरारें
या फ़िर
चलना है साथ ले कर दिलकश बहारें

तुम पर मय्यसर
चुनना है क्या तुमको

दर्द पराये जमाने में  कौन पालता है
जख्म गैरों के भला कौन सम्भालता है
जहर अपने हिस्से का  पीना होता है खुद को
छोड दे तकना तू अब इस पत्थर के बुत को

अपना किनारा खुद ढूंढ ले तू
अपना सहारा खुद ढूंढ ले तू
आंसूं हैं तब तक, आंखों में पानी है जब तक
जिन्दगी तभी तक, सांसों में रवानी है जब तक

ये घुटन ज्यादा बेहतर
या खुली सी फ़िजा है
तुम पर मय्यसर
चुनना है क्या तुमको

1 comment:

vandana gupta said...

बेहद भावभीनी रचना ……………दिल मे उतर गयी।