राख की तरह
बुझा बुझा सा है
अस्तित्व मेरा
लकडी से कोयला
कोयले से राख
होने तक का
अनुभव लिये
जीवन की प्रकाष्ठाओं को ही
नहीं छुआ मैंने
अंधकार के गर्त में
भी गिरा हूं यदा कदा
एक ही क्षण में
पूर्ण जीवन जीने का
अनुभव लिये
राख की तरह
बुझा बुझा सा है
अस्तित्व मेरा
No comments:
Post a Comment