ये कहां आ गये हम

कभी कभी... नहीं नहीं..... अधिकतर आत्म-मन्थन और स्वयं की खोज आदमी को ऐसे स्थान पर ले जाती है जिसकी उसे स्वप्न में भी परिकल्पना नहीं होती... सबूत के तौर पर इस चित्र को देखें और मुझे बतायें कि क्या मैंने कुछ गलत कहा है

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

टार्च बुझाओ ओर भागो........, आप सब को नवरात्रो की शुभकामनायें,

अजय कुमार said...

मजेदार है ,बधाई ।