जानता हूं ख्वाबों की दुनिया लाख बेहतर है हकीकत से
न जाने फ़िर भी क्यों मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं
जानता हूं खिलने से पहले ही मुर्झा जायेंगे गुलोगुल सारे
न जाने फ़िर भी क्यों मैं इक चमन खिलाना चाहता हूं
जानता हूं तेरी मंजिल के रास्ते नहीं गुजरते घर से मेरे
न जाने फ़िर भी क्यों मैं राह में नजरे बिछाना चाहता हूं
जानता हूं राहे मुहब्बत की दुशवारियां कुल मैं फ़िर भी
न जाने फ़िर भी क्यों मैं हदों से गुजर जाना चाहता हूं
1 comment:
जानता हूं राहे मुहब्बत की दुशवारियां कुल मैं फ़िर भी
न जाने फ़िर भी क्यों मैं हदों से गुजर जाना चाहता
ati sundar panktia
Post a Comment