हर्फ़े मुहब्बत
मुकाम दोस्ती का बना कर गिरा दिया उसने
हर्फ़े-मुहब्बत खुद लिख कर मिटा दिया उसने
भला इस खाक में कहां खोये लफ़्ज मिलते है
चुन दौलत रिश्तों में फ़ासला बढा दिया उसने
1 comment:
सुरेन्द्र सिंह " झंझट "
said...
bahut sundar abhivyakti..
February 21, 2011 at 4:37 PM
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bahut sundar abhivyakti..
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