गर वक्त मेहरवान हुआ फ़िर कभी
यूंही तुझ से मिलेंगे चलते चलते
जिस तरह चांद से मिलता सूरज
यूंही हर रोज शाम को ढलते ढलते
3 comments:
सदा
said...
बहुत ही सुन्दर शब्द ।
February 24, 2011 at 11:50 AM
Shah Nawaz
said...
बढ़िया है!
February 24, 2011 at 6:29 PM
राज भाटिय़ा
said...
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
February 24, 2011 at 6:45 PM
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
बहुत ही सुन्दर शब्द ।
बढ़िया है!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
Post a Comment