गर वक्त मेहरवान हुआ फ़िर कभी
यूंही तुझ से मिलेंगे चलते चलते
जिस तरह चांद से मिलता सूरज
यूंही हर रोज शाम को  ढलते ढलते

3 comments:

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द ।

Shah Nawaz said...

बढ़िया है!

राज भाटिय़ा said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।