सँदेह




सँदेह की इक घडी
जीवन पर भारी पडी

शक की मरियल लता
प्रेम-वृक्ष पर झूलती
रही प्रीत रस लीलती
और फलती फूलती

प्रेम-वृक्ष सूखने लगा
पात पात झर गये
डाल थे जो हरे भरे
सारे सूने हो गये
कीर्ति तो शून्य हुई
दँश दूने हो गये

3 comments:

  1. यथार्थ की भावभूमि पर सार्थक रचना ..

    संदेह अथवा अविश्वास प्रेम संबंधों को तार-तार कर देता है |

    ReplyDelete
  2. सचमुच संदेह छीन लेता है विश्वास की लालिमा ....... हकीकत के भाव लिए रचना ....

    ReplyDelete
  3. sach me ....aapne bahit sundar shabdo ka prayog kiya hai ....bahit badhiya

    ReplyDelete