तेरी याद आ रही है



याद का क्या है
गाहे वगाहे चली आती है
सावन जब बरसता है
धूप जब गुनगुनाती है

न सुबह, न शाम से
इसका कोई वास्ता है
न दर,  न दीवार से
होकर इसका रास्ता है

ये बंद आंखो से भी
दिल में उतर जाती है
हो तन्हाई या  भीड
बहुत तडफ़ाती है

तुम चले आओ न कभी
इन्हीं यादों की तरह
बिन खबर दिये जैसे
ये अक्सर चली आती हैं.

2 comments:

Kailash Sharma said...

तुम चले आओ न कभी
इन्हीं यादों की तरह
बिन खबर दिये जैसे
ये अक्सर चली आती हैं..

सच है यादों से छुटकारा कहाँ मिलता है..बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें!

Navneet verma said...

Nice...