ऐ बादल
क्या किसी विरहन के ह्र्दय का ताप है तू
या किसी प्रेमी के असुअन की भाप है तू
ऐ बादल
क्या नीर से प्रीत है तेरी
या बूंदों से बैर है तेरा
किस चातक की प्यास है तू
ऐ बादल
मरू हैं तेरी बाट जोहते
तू बरसता किसी ताल पर
कब जानेगा किस किस की आस है तू
उमढ घुमड कर नभ पर छा जाता है
फ़िर बिन बरसे ही छितरा जाता है
क्या किसी जोगी के मन का आलाप है तू
ऐ बादल
क्या किसी विरहन के ह्र्दय का ताप है तू
या किसी प्रेमी के असुअन की भाप है तू
ऐ बादल
क्या नीर से प्रीत है तेरी
या बूंदों से बैर है तेरा
किस चातक की प्यास है तू
ऐ बादल
मरू हैं तेरी बाट जोहते
तू बरसता किसी ताल पर
कब जानेगा किस किस की आस है तू
ऐ बादल
उमढ घुमड कर नभ पर छा जाता है
फ़िर बिन बरसे ही छितरा जाता है
क्या किसी जोगी के मन का आलाप है तू
ऐ बादल
ऐ बादल
ReplyDeleteउमढ घुमड कर नभ पर छा जाता है
फ़िर बिन बरसे ही छितरा जाता है
क्या किसी जोगी के मन का आलाप है तू
खूबसूरत रचना ..अच्छी अभिव्यक्ति
मरू हैं तेरी बाट जोहते
ReplyDeleteतू बरसता किसी ताल पर
कब जानेगा किस किस की आस है तू
वाह बेहद उम्दा भावाव्यक्ति।
सुन्दर रचना...
ReplyDeletesundar prstuti....
ReplyDeleteबरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने किस राह से बचना है , किस छत को भिगोना है !
ReplyDeleteसुन्दर !
बहुत ही बढि़या ...
ReplyDeleteबादल किसी विरहण के ह्रदय का ताप है बहुत सही लिखा है बधाई |
ReplyDeleteआशा
बहुत सुन्दर भीगी-भीगी-सी भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यकित...
ReplyDeletemohi ji
ReplyDeleteis abhivyakti ke liye aapko puruskar milna chahiy
madhu tripathi
http://kavyachitra.blogspot.com