आदमी कहो तो सरफ़िरा है

हंसी मिली है इस धरा से
खुशी मिली है इस धरा से

चांद पर कहो क्या धरा है
आदमी कहो तो सरफ़िरा है

नजर गडाये हर दिशा में
जमीं तलाशता है हवा में

चढा जीतने का बस नशा है
आदमी कहो तो सरफ़िरा है

तराशते हैं जो हर नगर को
संवारते हैं जो हर शहर को

गंदी बस्तियां उनका जहां है
आदमी कहो तो सरफ़िरा है

वास्तविकता से नजरें चुरा कर
रहा नाप धरा-गगन की दूरियां
दो घटों के बीच फ़ासले बढा कर
उल्टी दिशा घूमा कर सारी धूरियां

आंकलन औंधे मुहं गिरा है
आदमी कहो तो सरफ़िरा है

6 comments:

Monika Jain said...

hmm aadmi sarfira to hai ...achchi prastuti

Asha Joglekar said...

jami talashta hai hawa men ab safira hee to khenge.

ghughutibasuti said...

आदमी या यह संसार कोई तो सरफ़िरा है ही।
घुघूती बासूती

Madan Mohan Saxena said...

ख्याल बहुत सुन्दर है और निभाया भी है आपने उस हेतु बधाई, सादर वन्दे,,,,,,,,,

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत बढ़िया.....
बेहतरीन ख़याल....

सादर
अनु

Unknown said...

bahut achha