ढर्रा सी जिन्दगी - गीत

एक ढर्रा सी तो है बस यह जिन्दगी
सुबह हुई नहीं कि फ़िर निकल पडी
हजारों सवाल विखरे हैं हर तरफ़
और जबाब ढूंढती फ़िर रही जिन्दगी

खुशी के पल मिले जो दो जरा
ये होंठ अगर लिये जो मुस्करा
कई गुनाह हिस्से में दर्ज हो गये
गिरिफ़्तार हो गई फ़िर ये जिन्दगी

अगर बोझ किसी का ले कोई उठा
किसी के दर्द में जो गर आंसू बहा
हजारों किस्से समझो फ़िर बन गये
शर्मशार हो गई फ़िर ये जिन्दगी

सुकून ढूंढे भी कोई यहां तो है कहां
दरबदर है खुद यहां की सारी फ़िजां
गुम होने का डर यहां हर मोड पर
मंझधार हो गई फ़िर ये जिन्दगी

एक जर्रा सी तो है बस यह जिन्दगी
आंधियों के साथ साथ ही उड रही
आशियाने तलाशती फ़िरती हर तरफ़
सफ़र मे बेजार फ़िर रही जिन्दगी


मोहिन्दर कुमार











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