गजल कोई सिला दो मुझको


मिटाना चाहते हो तो मिटा भी दो मुझको
कोई तो सिला मेरी मुहब्बत का दो मुझको
मेरी हस्ती है सिर्फ और सिर्फ तेरी खातिर 
जहाँ अँधेरा हो तेरी राहोँ मेँ जला लो मुझको
कतरा कतरा मुहब्बत का समेटा था दिल मेँ 
चाहो तुम तो इस समन्दर मेँ बहा दो मुझको
करीब सबसे है तेरा मुकाम मेरे इस दिल मेँ 
मैँ तेरी आँख मेँ क्या हूँ ये तो बता दो मुझको
अगर तुझे लगती है मेरी मुहब्बत कोई गुनाह 
जो किताबोँ मेँ भी न हो ऐसी सजा दो मुझको

मोहिन्दर कुमार

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