पेशावर (पाकिस्तान) के एक स्कूल मेँ आतँकवादियोँ द्वारा निर्दोश बच्चोँ की
हत्या और उनके परिजनोँ के दुख से उपजी कुछ पक्तियाँ समर्पित हैँ.... इस घटना की जितनी
निन्दा की जाये कम है... साथ ही अपराधियोँ के लिये बडे से बडा दण्ड भी कम रहेगा...
शायद फाँसी भी कम पड जाये.
झर गये आशाओँ के
सुमन
सूनी हरी भरी क्यारी
हो गई
जालिम दरिँदोँ का
क्या गया
गिनती मेँ इक शुमारी
हो गई
रोयेगी माँ की आँख
उम्र भर
निढाल बाप नन्हेँ की
कब्र पर
ढोये बोझा किसी के
पाप का
ममता आतँक की सवारी
हो गई
ये हैँ न किसी देश
के न धर्म के
कसाई ये, व्यापारी
हैँ बस जुर्म के
इनको जड से मिटाने
का वक्त है
हस्ती इनकी इक
बिमारी हो गई
मोहिन्दर कुमार
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