पलाश



तुम बिन क्या हाल है मेरा
सब कुछ पूछो यह पूछो
बाहर से कोई जान पाये
भीतर क्या है हाल पूछो
बसंत छाई  है  उपवन मेँ
पलाश  उपजा मेरे मन मेँ
गँधहीन पुष्पोँ से सज्जित
पत्रहीन स्वय़ँ से लज्जित

जिसे देख कर सभी सराहेँ
क्षितिज लालिमा की रेखायेँ
फूलदान के लिये नहीँ खरा
जँगल की आग है नाम धरा
टेसू बन दिन भर झरता हूँ
अबीर गुलाल भी बनता हूँ
रँगता हूँ मैँ सब के मन को
तपन से अपनी मैँ जलता हूँ


मोहिन्दर कुमार

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