धूप से रहगुजर की सायोँ से वास्ता रखा
हो सका जहाँ तक बीच का रास्ता रखा
सिर्फ दोस्ती ही नहीँ निभाई है यहाँ मैँने
दुश्मनोँ से भी है बराबर का राब्ता रखा
कुछ मीठे और कुछ कडवे घूँट पीने पडे
बना के मैँने मगर जुँबा का जायका रखा
राहोँ मेँ मुझे जहाँ भी चिराग सोये मिले
मैँने आँखोँ मेँ अपनी ख्वाब जागता रखा
और क्या था दुआओँ के सिवा मेरे साथ
रहेगा उनका असर बस यही हौँसला रखा
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