दिल में तेरी यादों का गुलाब खिल तो आया है
साथ हिस्से में मगर कुछ कांटे भी मेरे आये हैं
सोचता हूँ क्यों कोई नहीं मिलता अपनों सा यहाँ
फिर याद आता है मुझे हम इस देश में पराये हैं
पहले हर आवाज पर लगता था कि कोई आया है
जानता हूँ अब कोई नहीं दस्तक देती ये हवायें हैं
जिस्म तो मेरा आवाज के घेरों से निकल आया है
क्या करूँ मैं उनका दिलसे मेरे उठती जो सदायें हैं
1 comment:
बढ़िया ।
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