बीते हुये पल



राजे दिल खोलो न खोलो
एक दिन खुद ही खुल जायेगा
ये परिन्दाये-इश्क
खुदबखुद पर फडफडायेगा
दिल की बातें जमाने में छुपती नही
मुहब्बत का परचम बिन हवा के लहरायेगा

टूटे पेमानों में मय डाली जाती नही
टूटे दिल में दूसरी मुहब्बत पाली जाती नही
उजडे गुलशन तो फिर से बहारों में बस जाते हैं
उजडी तमन्ना फिर से बर आती नहीं

दिल के खेलों में बरबादी के सिवा कुछ नहीं
मुहब्बत बुझती शमा के सिवा कुछ नहीं
आजकल नफरत जमाने में पुरजोर है
दिल खाली बोतल के सिवा कुछ नहीं

8 comments:

राकेश खंडेलवाल said...

बात की बात है बात कुछ भी नहीं
यों तो जग साथ है, साथ कुछ भी नहीं

चांद से उड़ गये बादलों के कफ़न
वरना ये चांदनी रात कुछ भी नहीं

Udan Tashtari said...

आपकी रचना पसंद आई और राकेश भाई की टिप्पणी के तो क्या कहने, वाह!!

Divine India said...

इस बार आपकी कविता निराशा की ओर निकल गई है…मोहिन्दर जीवन निराशा नहीं या तो इससे कम है या और ज्यादा…। लिखा बहुत अच्छा है।

Satyendra Prasad Srivastava said...

दिल की बातें जमाने में छुपती नही
मुहब्बत का परचम बिन हवा के लहरायेगा

क्या बात कही आपने। प्यार करने वालों को ऐसे ही आत्मविश्वास से लबरेज होना चाहिए

Vikash said...

कहीँ पढा था....याद आ गया। :D

"मुहब्बत आग की सूरत
बुझे सीनों मे जलती है तो दिल बेदार होते हैं
मुहब्बत की तपिश मे कुछ अजब असरार होते हैं
कि जितना ये भड़कती है
उरुसे-जां महकती है।
दिलो के साहिलों पे जमा होती और बिखरती है
मुहब्बत झाग की सूरत।
मुहब्बत आग की सूरत। "

सुनीता शानू said...

मोहिन्दर जी क्या बात है आज मोहोबत में क्या ठोकर खाये हो? या भाभी जी से मार खाकर आये हो?
दिल के खेलों में बरबादी के सिवा कुछ नहीं
मुहब्बत बुझती शमा के सिवा कुछ नहीं
आजकल नफरत जमाने में पुरजोर है
दिल खाली बोतल के सिवा कुछ नहीं
रचना तो सारी कि सारी सुंदर है मगर इतना दर्द क्यूँ भाइ..

शानू

कंचन सिंह चौहान said...

सच ही तो कहा है मोहिन्दर जी, कुछ चीजें छुपाने से कहाँ छिपती हैं,
खैर, खून, खाँसी, खुशी, बैर, प्रीत, मदपान,
दाबे से ये न दबे, जाने सकल जहाँ

रंजू भाटिया said...

दिल के खेलों में बरबादी के सिवा कुछ नहीं
मुहब्बत बुझती शमा के सिवा कुछ नहीं
आजकल नफरत जमाने में पुरजोर है
दिल खाली बोतल के सिवा कुछ नहीं

aap yun bhi kahte hain ...:) fir bhi sach aur dil ko chuti hai rachana