अधूरी कोशिश


ना जाने किस बात की सजा दी है
हम ने तो उनसे सिर्फ वफा ही वफा की है
आप क्यों हैरान हैं मेरी आंखों में नमी देख कर
ये बारिश आप ही ने तो अत: की है

तेरी आमदो-रफ्त से मै अन्जान नही
तेरी सोहबत मिलना आसान नही
ख्वाब देखा था ये हंसी मैंने
मगर सोचा पहले ये अन्जाम नहीं

इक उमर कहां काफी है
तुझे भुलाने के लिये
ये बात ओर है
मैंने ये आधी-अधूरी सी कोशिश की है

1 comment:

रंजू भाटिया said...

यह ज़िंदगी अब तो हमारे लिए बस नाम की है
बस रही है इस ज़िंदगी में बस धड़कन तुम्हारी
जब तेरी यादो के दर्द ने बेबस कर दिया हमे
तोह अपने अशक़ो में हमने तेरी तस्वीर छिपा ली.
तुझसे मिल के दिल को मिलता था सकून और क़रार
अब तो बस बेबसी है और है एक अजब सी बेक़रारी

ranju