भाग्य


जीवन के सुदूर क्षितिज पर यदि मैंने
स्वप्नों को साकार होते देखना चाहा
तो ये सहज ही था, अपवाद नही
परन्तु ये न भाग्य को मंजूर हुआ
तदोपरान्त
कपोल कल्पित कथानक सा
जीर्ण शीर्ण खण्डहर सा
भौर में देखे स्वप्न सा

मैं बिखर गया
मैं टूट गया
मैं बिसर गया

तेरी लावण्य संपदा से हतप्रभ हो
जो क्षण सहेजे थे मैंने
वही यहां तक मुझ को ले आये
जब तक सम्मोहन दूर हुआ

मैं बिखर गया
मैं टूट गया
मैं बिसर गया

मोहिन्दर

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