बिखरे मोती


माला फिर से बन जायेगी
बिखरे मोती पिरोने होंगे
बगिया फिर से खिल जायेगी
कांटे सारे चुनने होंगे


भ्रष्ट राजनीति पर लगा बुहारी
कालिख सारी धोनी होगी
झाड-झंखाड उखाड फैंक कर
हल दोबारा जोतना होगा
नयी रोप फिर बोनी होगी

पाठशाला जब बनेगी मंदिर
और मदरसे होंगे मस्जिद
मन के भेद जब मिट जायेंगे
धर्म न जब आडे आयेंगे
तभी होगा सुप्रभात
मिल जायें जब सारे हाथ

प्रीत की पांती जोडनी होगी
उजली चादर ओढनी होगी
बुनने होंगे आशा के तार
मन के अहम व विषाद बिसार

माला फिर से बन जायेगी
बिखरे मोती पिरोने होंगे
बगिया फिर से खिल जायेगी
कांटे सारे चुनने होंगे

मोहिन्दर

No comments: