उलझन


यूं तो जीवन प्रकाश मिला
उडने को आकाश मिला
कल्पना के पंख मिले
मित्र भी असंख्य मिले
प्रियवर अपने मीत मिले
सतरंगी कुछ गीत मिले
अमुल्य तरुणायी मिली
तुम सी जीवंत परछाई मिली
हरा भरा संसार मिला
सागर से घहरा प्यार मिला
फिर क्या है जो खलता है
चंचल मन को छलता है

मोहिन्दर

1 comment:

Divine India said...

विराट का अधूरा पन!!!