मृगतृष्णा


पोखर में सीप तलाश रहा
तू क्या पायेगा
तृष्णा तेरी मृगतृष्णा है
पछतायेगा

स्वप्नमयी इस दुनिया में
क्यों तू सपनो से खेले
टूट सुनहला कोई स्वप्न
पलकों में चुभ जायेगा

किसका क्या अर्थ है
और सब कुछ क्यों व्यर्थ है
इसकी गहरायी में न जा
सिर्फ शून्य पायेगा

पोखर में सीप तलाश रहा
तू क्या पायेगा
तृष्णा तेरी मृगतृष्णा है
पछतायेगा


मोहिन्दर

1 comment:

रंजू भाटिया said...

पोखर में सीप तलाश रहा
तू क्या पायेगा
तृष्णा तेरी मृगतृष्णा है
पछतायेगा

bilkul sahi likha hai aapne ..
dil mein uatarane waale lafaz hai yah ..