एक बार फिर लौट आ


वक्ते नाजुक जिसने संभाला था
गरदिशों से जिसने निकाला था
हाथ छुडा न जाने कहां रुखस्त हुआ
मसीहे का भरम जिसपे पाला था
हैं मलाल में हम
फिर उसी जाल में हम
तुझे खबर भी नहीं
कि हैं किस हाल में हम

है वही शाम मगर
सभी सामान मगर
दिल का सुकून तेरे साथ गया
गम में है डूबा जिगर

जामोंमीना में नहीं
तेरी खुशबू सा नशा
लहू में घुल के मेरे
मेरी नस नस में बसा

सुनने सुनाने के लिऐ
मुझे समझाने के लिऐ
चाहे लौट के जाने के लिऐ
एक बार आ, आ, आ

मोहिन्दर ९.१.२००७

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