वीणा में झनकार ना होती


वीणा में झनकार ना होती
अगर ये बेजान तार ना होती
कश्ती किसी की पार ना होती
अगर लकडी की पतवार ना होती
परिन्दों के घर न बन पाते
सुखे पत्ते ओर
खण्डर की दीवार ना होती
बसंत भले हो कितना सुन्दर
पतझड भी बेकार नही होती
छोटे छोटे खण्ड ना जुडते
ऊन्ची ये मीनार ना होती
बांध बना लो चाहे सागर पर तुम
दिल पर कोई सरकार नही होती
घुप्प अन्धेरे अगर ना घिरते
रोशनी की दरकार ना होती
अर्थ का अनर्थ बन जाता है
रिश्तों में जब
प्यार कि फुहार नही होती

मोहिन्दर

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