इन्द्र्धनुष


तुम अपने रंग मुझे दे दो
मैं इन्द्र्धनुष बनाऊंगा
नीले रंग से मैं
बांधूगा सागर को
गहरे काले रंग से
बादल मै बनाऊंगा

हरे रंग से मैं रंग दूंगा
खेतों की हरियाली को
चटकीले रंगों से
फूलों को खिलाऊंगा

दुधिया रंग हो मेरी रात की चांदनी का
सिन्दूरी रंग से मै भौर व सांझ सजा दूंगा
मटमैला, सफेद या नीला
कौन सा रंग हो बहते हुए पानी का
भूरे पर्वत पर चांदी जैसी बर्फ बना दूंगा

आसमानी नभ में उडते हों
रंगीन कई पंछी
सुनहरी रंग के मैं
नीड बना दूंगा

भौतिक इन रंगों का
रिश्ता है मन के भावों से
कोई जादुई तूलिका मुझे दे दो
हृदय में प्रेम, उमंग, करुणा, हास भरकर
दुर्भाव मिटा दूंगा

तुम अपने रंग मुझे दे दो
मैं इन्द्र्धनुष बनाऊंगा


मोहिन्दर

3 comments:

Divine India said...

यह है मेरे करीब की भावना!!बहुत उम्दा रचना कुछ और कहना अतिश्योक्ति हो जाएगी…कवि की वो ऊँची सोंच दिख रही है जिसका वर्तमान समय में सर्वथा आभाव नजर आता है…।

रंजू भाटिया said...

bahut hi dil ke kareeb hai yah aapki rachana ..padh ke bahut accha laga ....

Dr.Bhawna Kunwar said...

इन्द्रधनुषी रंगों का अच्छा समायोजन किया है।