जिन्दगी के सफर में जिन्दगी
एक राज़ हो गयी
दिन छिलकों की तरह अलग होते रहे
जिन्दगी जिन्दगी ना रही
जिन्दगी प्याज़ हो गयी
फूलों से लदी शाख को
खा गयी खिज़ां की नज़र
दिल पर लगी इक खंरोंच
जाने क्यूं लाइलाज हो गयी
साथ में लिये फिरते रहे
नन्हीं वया सी आरज़ू
जाने किस लिये दुनिया की नजर
नज़रे-बाज़ हो गयी
3 comments:
एक राज़ हो गयी
दिन छिलकों की तरह अलग होते रहे
जिन्दगी जिन्दगी ना रही
जिन्दगी प्याज़ हो गयी
bahut hi sunder rachna hai yah aapki ...padh ke kai vichaar dil mein chhaa gaye !!
अरे भाईसाहब आप कहाँ थे अब तक, आपके चिट्ठे का पता आज ही लगा चिट्ठाचर्चा से, खैर लेट ही सही हार्दिक स्वागत है आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में।
आगे से आते रहेंगे आपके चिट्ठे पर।
श्रीश 'ई-पंडित'
http://ePandit.BlogSpot.Com/
आपकी कविताएँ बहुत अच्छी लगी.
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