एक नदिया



एक नदिया बहती हुई
कलकल कलकल
स्वंय से यह संवाद है
कुछ न किसी से कहती हुई

अंश देती बादलों को
अंश देती भूतलों को
मांगती न कुछ किसी से
काटती अपने तलों को
और गहरी, और गहरी
भीतर तल के रहती हुई

अंचलो के प्रवाह को लपेटे
अपनी चाह को मन में समेटे
बांधों में बंधती कहीं
ऊंचाईयों से गिरती कहीं
सीने पर चोट खा कर
बंजरों को लहलहा कर
मन ही मन हर्षित हुई

एक नदिया बहती हुई
कलकल कलकल
स्वंय से यह संवाद है
कुछ न किसी से कहती हुई

1 comment:

mehek said...

nadiya ke bhav bahut sundar.