का संग खेलूं मैं होरी


का संग खेलूं मैं होरी.. पिया गयल हैं विदेस रे
पीहर मा होती तो सखियों संग खेलती
झांकन ना दे बाहर अटारिया से
सासू का सख्त आदेस रे

का संग खेलूं मैं होरी.. पिया गयल हैं विदेस रे

लत्ता ना भावे मोको, गहना ना भावे
सीने में उठती है हूक रे
याद आवे पीहर की रंग से भीगी देहरिया
और गुलाल से रंगे मुख-केस रे

का संग खेलूं मैं होरी.. पिया गयल हैं विदेस रे

अंबुआ पे झुलना, सखियों की बतियां
नीर बहाऊं और सोचूं मैं दिन रतियां
पिया छोड के आजा ऐसी नौकरिया
जिसने है डाला सारा कलेस रे
का संग खेलूं मैं होरी.. पिया गयल हैं विदेस रे

4 comments:

Udan Tashtari said...

:) :)

बहुत खूब, मोहिन्द्र!

होली की बहुत मुबारकबाद!!

Divine India said...

शब्दों को बनाया है आपने गीत मधुर
फुहार पहले ही विखेर दी तो हम रंगीन
होने हीं थे…।
होली की शुभकामनाएँ!!

ePandit said...

बहुत खूब, पिया विदेश हों तो होली खेलने में क्या मजा। भावों को खूब उकेरा आपने।

Dr.Bhawna Kunwar said...

वियोग की अवस्था को आपने बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है। बधाई स्वीकारें।