नासमझी

"जानम" तेरी अदा को, मैं प्यार समझ बैठा
"हां" हंस कर कहा तुमने, मैं इज़हार समझ बैठा

मेरी नासमझी थी, मेरी नादानी थी
मैं कागज़ के फूलों को, गुलजार समझ बैठा

थे और कई मौजूं, थे और कई उनवां
तुम कभी भी न थे मेरे, मैं तुम्हें यासार समझ बैठा

मालूम था कि हर चमकती चीज सोना नही होती
फिर भी मैं हुस्न के फंदे को, जूनार समझ बैठा

शामे-गमे-यार, हर रात से काली थी
इक प्यासी नदिया को आवशार समझ बैठा

यासार = जो हमेशा अंग संग रहे

जूनार = पवित्र धागा या डोरी

आवशार = प्यास बुझाने वाला झरना

4 comments:

ePandit said...

खूब मियां आप तो शायर भी हो।

"तुम कभी भी न थे मेरे, मैं तुम्हें यासार समझ बैठा"


वाह वाह क्या बात है !

निम्न शब्दों के अर्थ बता सकते हैं:
यासार, आवशार, जूनार ?

Mohinder56 said...

JUNAAR = PAVITRA DHAAGA
YASAAR = JO UNG SUNG RAHE
AAVSHAAR= SPRING, JHARNA

रंजू भाटिया said...

मेरी नासमझी थी, मेरी नादानी थी
मैं कागज़ के फूलों को, गुलजार समझ बैठा

थे और कई मौजूं, थे और कई उनवां
तुम कभी भी न थे मेरे, मैं तुम्हें यासार समझ बैठा

wah!! bahut bahut sundar likha hai ...very nice words ..

श्रद्धा जैन said...

wah wah wah bhaut bhaut khoob mohinder ji bhaut bhaut khoob