अनुराग

आँखों में भर कर तुमको प्रीतम
लो पलकें मूंद ली मैंने
किवाड बंद देख कर तुम
बाहर से कहीं लौट ना जाना

कोरे पन्ने इस जीवन के
नाम तुम्हारे कर डाले हैं
अमर कथा की चाह नही है
अपना नाम सुनहरी लिख जाना

अनुराग की नन्ही कोमल डाली
जो मिल कर हमने रोपी थी
वह पुष्पित,पल्लवित हो आयी है
तुम बसन्त बन कर बदल न जाना

मेरी छत से जो दिखते हैं
सब तारे मैंने गिन डाले
मेरे चन्दा तो तुम्हीं हो
चकोरी को अपनी भूल न जाना

4 comments:

राकेश खंडेलवाल said...

मोहिन्दरजी

रचना के भाव बहुत सुन्दर हैं. अगर शिल्प पर थोड़ा ध्यान दें तो यह एक बेहतरीन रचना होगी.

सादर

राकेश

Udan Tashtari said...

बढ़िया भाव हैं-

रंजू भाटिया said...

अनुराग की नन्ही कोमल डाली
जो मिल कर हमने रोपी थी
वह पुष्पित,पल्लवित हो आयी है
तुम बसन्त बन कर बदल न जाना

bahut acchi lagi yah lines
sundar likha hai aapne ..

गीता पंडित said...

bhaavaatamak pahaloo
bahut sashkta hai